हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित हदीस "वसाइल अल-शिया" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الصادق علیہ السلام:
صِيامُ يَوْمَ غَديرِ خُمٍّ يَعْدِلُ صِيامَ عُمْرِ الدُّنْيا لَوْ عاشَ اِنْسانٌ ثُمَّ صامَ ما عَمَرتِ الدُّنْيا لَكانَ لَهُ ثَوابُ ذلِكَ
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
ग़दीर-ए-ख़ुम के दिन रोज़ा रखना पूरी दुनिया के रोज़े के बराबर है, यानी अगर कोई व्यक्ति पूरी ज़िंदगी रोज़ा रखता है, तो ईद-ए-ग़दीर (एक दिन) के रोज़ा का सवाब सभी के लिए बराबर होता है।
वसाइल अल शिया, भाग 7, पेज 324, हदीस4